सार्थक जीवन जीने की कला है योग
इंसान की मौलिक प्रवृत्तियों पर अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि उसके पास अभी जितना कुछ है, वह उससे अधिक पाना चाहता है। लोग जिन चीजों की इच्छा करते हैं, वह अलग-अलग होती हैं। अगर आपका खिंचाव पैसे की ओर है तो आप अधिक पैसा कमाने की सोचेंगे। अगर आपने ज्ञान अर्जित किया है तो आप और ज्ञान बटोरना चाहेंगे। चाहे वह प्रेम हो, धन हो, ज्ञान हो या सुख, आपके पास अभी जितना कुछ है, आप उससे कुछ और अधिक की कामना करते हैं। इंसान की इस प्रवृत्ति को दबाया नहीं जा सकता। मान लेते हैं कि आप कहते हैं, ‘मैंने सारी इच्छाएं त्याग दी हैं, मुझे केवल ईश्वर चाहिए।’ यदि किसी इंसान को सृष्टि का एक छोटा-सा टुकड़ा चाहिए तो आप कहते हैं कि वह लालची है। लेकिन आप उसी सृष्टि के स्रोत को पाने की इच्छा रखते हैं तो क्या आप सबसे बड़े लालची नहीं? अधिकतर लोग धरती के एक छोटे-से टुकड़े से काम चलाने को तैयार हैं, लेकिन आपको तो स्रष्टा ही चाहिए। क्या यह लालच नहीं है? अभी आप सोच रहे हैं कि अगर मुझे यह चीज मिल जाए तो बात बने। जैसे ही आप इसे हासिल करने में सफल होते हैं, आप सोचने लगते हैं कि अगर मुझे वह चीज मिल जाए तो बात ही क्या! अगर आप अपनी इच्छा करने की प्रक्रिया या लालच की प्रक्रिया पर ध्यान दें तो आपको समझ आएगा कि न तो ये पैसे के लिए है और न ही संपत्ति के लिए। आपकी इच्छा केवल विस्तार के लिए है।
यदि आप विस्तार चाह रहे हैं तो कितने विस्तार के बाद आप संतुष्ट हो जाएंगे? अगर आपको इस धरती का मालिक बना दिया जाए तो क्या आपको संतोष हो जायेगा? ऐसा नहीं होगा। तब आप अपना साम्राज्य दूसरे ग्रहों और सितारों तक फैलाना चाहेंगे।
आपके अंदर कुछ ऐसा है, जो विस्तार चाहता है- असीम और अनंत होना चाहता है। आपके अंदर कुछ है, जो सीमाएं पसंद नहीं करता। आप जैसे ही एक सीमा का अनुभव करते हैं, उसे पार करना चाहते हैं। मान लेते हैं कि आपको जेल के एक बहुत छोटे कमरे में बंद कर दिया जाता है तो आपको यह बहुत कष्टप्रद लगेगा। कल अगर आपको एक बड़े कमरे में रखा जाता है तो एक दिन तो आप बहुत अच्छा महसूस करेंगे, लेकिन उसके अगले ही दिन आपको बुरा लगने लगेगा। जेल चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, आपके अंदर कुछ है, जो सीमाओं को सहन नहीं कर पाता - वह असीम-अनंत होना चाहता है।
आपके अचेतन मन में असीम होने की प्रवृत्ति है। आइए देखें कि उस ओर बढ़ने के लिए आपके पास कौन-सा तरीका है? अभी आपके जीवन के सारे अनुभव पांच इंद्रियों तक ही सीमित हैं- देखना, सुनना, सूंघना, चखना और स्पर्श करना। क्या आपको जीवन का कोई और आयाम पता है? आपकी कल्पना शक्ति भी इन्हीं पांच इंद्रियों से मिली जानकारी पर आधारित है। यह पांच इंद्रियां कुछ भी ऐसा अनुभव नहीं कर सकतीं, जो भौतिक न हो। आप केवल भौतिक चीजों को ही देख, सुन, सूंघ, चख और छू सकते हैं। तो आप भौतिक पहलुओं से असीम होने की कोशिश कर रहे हैं। यह कुछ ऐसा है, मानो घोड़े पर बैठ कर चांद तक की यात्रा करने की इच्छा। हो सकता है कोई आपको सलाह दे कि चांद पर जाने के लिए एक नया चाबुक ले कर कोशिश करो। मेरा विश्वास करें, घोड़ा मर जाएगा, पर आप चांद पर नहीं पहुंच पाएंगे। अगर आपको चांद पर जाना है तो आपको एक बिल्कुल अलग तरीके का यान चाहिए।
योग एक ऐसा ही यान है। यह आपको आपकी सीमाओं के परे ले जाने की एक तकनीक है। अपनी सीमाओं से ऊपर उठने को कई तरह से समझा जा सकता है। सबसे आसान व्याख्या है- योग लोगों को जीवन के उस आयाम को अनुभव करने में सहायता करता है, जो भौतिक नहीं है। शरीर, मन और जो कुछ भी आप अभी जानते हैं, वे भौतिक आयाम हैं। योग लोगों को भौतिक के पार ले जाने की तकनीक है- सीमित से असीमित की ओर।(सद्गुरु जग्गी वासुदेव)